इफको नैनो यूरिया के उपरांत इफको के दूसरे तरल उर्वरक इफको नैनो यूरिया प्लस को केंद्र सरकार ने तुरंत ही मंजूरी दी थी।
वहीं, अब केंद्र ने इफको नैनो जिंक (तरल) और इफको नैनो कॉपर (तरल) को भी तीन साल के लिए अधिसूचित कर दिया है।
नैनो यूरिया के ऊपर चल रहे विवाद के बीच केंद्र सरकार ने इफको (इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड) नैनो जिंक लिक्विड और नैनो कॉपर लिक्विड निर्मित करने की मंजूरी भी दे दी है।
केंद्र ने यह स्वीकृति तीन वर्ष के लिए फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर 1985 के अंतर्गत दी है। इस संबंध में अधिसूचना भी जारी कर दी गई है।
पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए फसल पोषण पर दो और नैनो टेक्नोलॉजी आधारित नवीन उत्पाद शीघ्र ही बाजार में आ जाएंगे।
हालांकि, इफको ने अभी तक इसकी बोतल के आकार, मूल्य, उत्पादन की जगह और वितरण का विवरण जारी नहीं किया है।
जिंक और कॉपर माइक्रोन्यूटिएंट की श्रेणी में आने वाले उर्वरक हैं। मिट्टी में माइक्रो न्यूट्रीएंट का असंतुलन काफी ज्यादा बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में यह उर्वरक किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
जिंक और कॉपर पौधों की उन्नति और विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। पौधों में जिंक की कमी विश्व स्तर पर विशेष चिंताओं में से एक है। इसी तरह पौधों में कई एंजाइमी गतिविधियों और क्लोरोफिल और बीज उत्पादन के लिए कॉपर की जरूरत होती है।
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इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने एक ट्वीट कर इस बात की जानकारी साझा की है। इस अधिसूचना के पश्चात फिलहाल नैनो टैक्नोलॉजी पर आधारित इफको के चार तरल उर्वरक उत्पाद किसानों को उपलब्ध हो सकेंगे।
इफको नैनो यूरिया के पश्चात इफको के दूसरे तरल उर्वरक इफको नैनो यूरिया प्लस को सरकार ने अधिसूचित किया था। अब इफको नैनो जिंक (तरल) और इफको नैनो कॉपर (तरल) को तीन साल के लिए अधिसूचित किया गया है।
डॉ. अवस्थी ने अपने दिए गए एक बयान में कहा है, कि जिंक के अभाव की वजह से पौधों के विकास में गिरावट आती है। वहीं, कॉपर की कमी की वजह से पौधों में बीमारी लगने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
यह दो उत्पाद फसलों में जिंक और कॉपर की कमी को दूर कर सकते हैं। माइक्रो न्यूट्रीएंट की कमी कुपोषण का एक बड़ा कारण है। उन्होंने इन उर्वरकों के अधिसूचित होने को इफको की टीम के लिए एक बड़ी उपलब्धि बताया है।
भारत के दक्षिणी-पूर्वी समुद्री तटों में उगने वाले लाल-भूरे रंग के शैवाल भी फसल की गुणवत्ता के साथ पैदावार में बढ़ोत्तरी हेतु भी काफी सहायक साबित होते हैं। इफको (IFFCO) द्वारा इस समुद्री शैवाल के प्रयोग से जैव उर्वरक भी निर्मित किया जाता है। कृषि क्षेत्र को और ज्यादा सुविधाजनक बनाने हेतु केंद्र व राज्य सरकारें एवं वैज्ञानिक निरंतर नवीन प्रयोग करने में प्रयासरत रहते हैं। खेती-किसानी के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के साथ मशीनों को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इनका उपयोग करने के लिए कृषकों को अधिक खर्च वहन ना करना पड़े। इस वजह से बहुत सारी योजनाएं भी लागू की गयी हैं और आज भी बनाई जा रही हैं। इन समस्त प्रयासों का एकमात्र लक्ष्य फसल की गुणवत्ता एवं पैदावार में बेहतरीन करना है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए फसलीय पैदावार अच्छी दिलाने में जैविक खाद व उर्वरक स्थायी साधन की भूमिका निभा रहे हैं। जैविक खाद तैयार करना कोई कठिन कार्य नहीं है। किसान अपनी जरूरत के हिसाब से अपने गांव में ही जैविक खाद निर्मित कर सकते हैं। परंतु, मृदा का स्वास्थ्य एवं फसल के समुचित विकास हेतु कुछ पोषक तत्वों की भी आवश्यकता पड़ती है, जिसको उर्वरकों के उपयोग से पूर्ण किया जाता है। वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या यह है, कि रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मृदा की शक्ति पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसलिए ही जैव उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ाने और उपयोग में लाने की राय दी जाती है। समुद्री शैवाल जैव उर्वरक का अच्छा खासा स्त्रोत माना जाता है। जी हां, भारत में नैनो यूरिया (Nano Urea) एवं नैनो डीएपी (Nano DAP) को लॉन्च करने वाली कंपनी इफको ने समुद्री शैवाल के प्रयोग से बेहतरीन जैव उर्वरक (Bio Fertilizer) निर्मित किया है। जो कि फसल की गुणवत्ता एवं पैदावार को अच्छा करने में काफी सहायक माना जा रहा है।
देश के दक्षिण-पूर्वी तटों से सटे समुद्र में उत्पन्न होने वाले लाल-भूरे रंग के शैवालों के माध्यम से इफको ने 'सागरिका' उत्पाद निर्मित किया है। इसकी सहायता से पौधों की उन्नति व विकास के साथ-साथ फसलीय उत्पादन की बढ़ोत्तरी में काफी सहायता प्राप्त होती है। इफको वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के मुताबिक, इफको के सागरिका उत्पाद में 28% कार्बोहाइड्रेट, प्राकृतिक हार्मोन, समुद्री शैवाल, प्रोटीन सहित विटामिन जैसे कई सारे पोषक तत्व उपलब्ध हैं।
इफको की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, समुद्री शैवाल से निर्मित सागरिका का विशेष ध्यान फसल की गुणवत्ता में बेहतरी लाना है। इसकी सहायता से फल एवं फूल का आकार बढ़ाने, प्रतिकूल परिस्थितियों में फसल का संरक्षण, मृदा की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने एवं पौधों की उन्नति व विकास हेतु आंतरिक क्रियाओं को बढ़ावा देने का कार्य किया जाता है। किसान इसका जरूरत के हिसाब से फल, फूल, सब्जियों, अनाज, दलहन, तिलहन की फसलों पर छिड़काव कर सकते हैं।
बहुत सारे किसान वर्षों से रसायनिक कृषि करते आ रहे हैं। इसलिए वह एकदम से ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming)की दिशा में बढ़ने से घबराते हैं। क्योंकि किसानों को फसलीय उत्पादन में घटोत्तरी का काफी भय रहता है। इस प्रकार की स्थिति में इफको सागरिका किसानों के लिए काफी हद तक सहायक भूमिका निभा सकता है। यह एक रसायन रहित उर्वरक व पोषक उत्पाद है, जो कि फसल को बिना नुकसान पहुंचाए उत्पादन को बढ़ाने में कारगर साबित होता है। किसान हर प्रकार की फसल पर इफको सागरिका का दो बार छिड़काव कर सकते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 30 दिन के अंतर्गत सागरिका का छिड़काव करने से बेहतर नतीजे देखने को मिलते हैं। यह तकरीबन 500 से 600 रुपये प्रति लीटर के भाव पर विक्रय की जाती है। किसान एक लीटर सागरिका का पानी में मिश्रण कर एक एकड़ फसल पर छिड़काव किया जा सकता है।